Ladies Sexy tailor story 4
शैलजा दर्जी की बाँहों में पिघल रही थी और उसे इस बात की भनक भी नही थी कि उसका पति वापस घर आ रहा है। आज तो उनका भांडा फूटना तय लग रहा है। इस Ladies Sexy tailor story 4 sexy tailor story का अगला भाग-
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शैलजा मेरी बाँहों में पिघल रही थी और सए इस बात की भनक भी नही थी कि उसका पति वापस घर आ रहा है। पर मुझे मेरा अनुभव बता रहा था कि शायद विक्रम वापस आ जाय इसलिये मैने उससे कहा “शैलजा रानी हो सकता कि तुम्हारे पति को तुन्हारी चिन्ता हो रही हो और इसलिये वह वापस आ रहा हो”। अभी भी मैं उसके स्तनों के साथ खेल रहा था और मेरा तना हुआ लंड उसके रसीले नितम्बों से छू रहा था। वह अपने होश खो चुकी थी और आँखें बन्द करके मेरे लंड को अपने नितम्बों पर महसूस करते हुये अपने स्तनों की मसाज़ का मज़ा लेती रही। उसकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया न देख मैने उसके कान को धीरे से काटा और बोला “रानी, लगता है कि तुम अपने पति की आँखों के सामने मुझसे संभोग करना चाहती हो”।
यह सुनते ही वह होश में आयी और अपनी आँखें खोलकर बोली “बाबू प्लीज़ मुझे जाने दो” पर उसने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जिससे यह प्रतीत हो कि वह वास्तव में यही चाहती थी।
मैं लम्बे समय तक उस खूबसूरत हुस्न की परी का आनन्द उठाना चाहता था इसलिये सोचा कि उसे कपड़े पहन लेने देता हूँ पर मैनें उससे कहा “रानी, तुमने मुझे पूरी तरह से अपना दीवाना बना लिया है, ये देखो”। इतना कहते हुये मैनें उसका चेहरा अपने लंड की तरफ़ किया और अपने एक हाथ की मुट्ठी में उसे लेकर हिलाने लगा। वह मेरे सामने नंगी खड़ी थी और तेज साँसों की वजह से उसके स्तन तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे।
उसके निप्पल उत्तेजना के कारण सख्त होकर बाहर की तरफ निकले हुये थे। वह अपने हाथों से अपनी योनि को ठके हुयी थी। मैनें अपने लंड को हिलाते हुये दूसरे हाथ से उसके स्तनों को दबाते हुये उसके निप्पल पर चिंगोटी काटी और बोला “प्लीज़ अपने पति के आने से पहले मेरे इस छोटे राजा की थोड़ी सहायता कीजिये”। उसने शर्माते हुये अपना हाथ मेरे लंड तक लाकर पूरे लंड पर फ़िराया और फ़िर अचानक तेजी से हिलाने लगी। मैने भी उसके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया जबकि उसने मेरे लंड की सेवा जारी रखी। मैनें तेजी से साँसें लेते हुये बोला “
ओह शैलजा, मैं वास्तव में किसी दिन तुम्हें ये सुख देकर तुम्हारा ॠण चुकाऊँगा, तुम सचमुच बहुत प्यारी और कामुक हो”। यह सुनकर उसने अपनी गति और तेज कर दी और अपने दूसरे हाथ से मेरी गोलियों से खेलने लगी। उसके स्तनों पर से पसीना बह रहा था और उसका पूरा शरीर चमक रहा था। मैं उसी समय उसके साथ संभोग करना चाहता था पर जल्दबाजी न दिखाते इस समय केवल हस्तमैथुन का ही आनन्द उचित समझा।
जल्द ही मैं कामोन्माद की चरमसीमा पर पहुँचने वाला था। मैनें उससे जमीन पर लेटने को कहा और अपना लंड पर अपने हाथ से जोरों से धक्के मारने लगा और स्खलित होते समय अपने वीर्य की धार को इस प्रकार से दिशा दी कि एक एक बूँद उसके स्तनों और पेट पर गिरे। पूरे एक मिनट तक मेरे लंड से द्रव बाहर आता रहा और फ़िर मैनें उस वीर्य को उसके स्तनों और पेट पर फ़ैला कर मसाज करने लगा। वह आँखें बन्द करके मसाज का आनन्द उठाती रही।
विक्रम लौटते हुये आधे रास्ते में अपनी पत्नी की चोट के बारे में सोच रहा था और इधर उसकी पत्नी मेरे सामने नंगी लेटे हुये मेरी मसाज़ का आनन्द ले रही थी। मैं उठा और फ़र्श पर नंगी लेटी हुयी उस प्यारी घरेलू औरत को निहारता हुआ बोला “शैलजा रानी, प्लीज़ अब उठो और कपड़े पहन लो वरना तुम्हारे पति को पता चल जायेगा कि तुमने अपने इस दर्जी के साथ क्या गुल खिलाये हैं। मैं उसके दिमाग में उसके पति के भय को जिन्दा रख कर उसे अधिक सतर्क बनाना चाहता था जिससे कि मैं लम्बे समय तक उसका भोग कर सकूँ।
यह सुनकर शैलजा उठी और अपने कपड़े लेकर जाने लगी तभी मैनें उसे पीछे से पकड़ लिया और उसकी योनि और स्तनों की मसाज करने लगा। वह अभी तक गर्म थी और स्खलित नहीं हुयी थी इसलिये फ़िर से मेरी इस मसाज़ का आनन्द लेने लगी। मैनें सोचा यह औरत वाकई में बहुत निडर है और अपने पति के आने की चिन्ता किये बगैर मुझसे संभोग के लिये तैयार है। मैने उससे कहा “शैलजा रानी, ऐसा लगता है कि तुम चाहती हो कि मैं अभी तुम्हें चोदूँ और मैं वादा करता हूँ मैं ऐसे चोदूँगा कि तुम याद रखोगी”।
तभी दरवाजे की घंटी बजी और हम दोनों डर गये। वह दौड़ कर अपने कमरे में चली गयी और दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया मैने भी जल्दी से कपड़े पहने और जाकर दरवाज़ा खोला। मेरे अनुमान सच निकला, उसका पति विक्रम वापस लौट आया था। मुझे देखकर वह चकित हो गया और इससे पहले कि वह कुछ बोले मैं ही अपनी सफ़ाई में बोल पड़ा “मैडम ने मुझे अपने ब्लाउज़ की नाप देखने के लिये बुलाया था और वो अन्दर अपना नया ब्लाउज़ पहन कर देख रहीं हैं”।
मैने यह तेज आवाज़ में बोला ताकि शैलजा यह सुन ले। वह बाहर आकर बोली “मास्टर जी, ब्लाउज़ ठीक है, धन्यवाद”। और भोली बनते हुये विक्रम को देखकर बोली “ओह, तुम आ गये, मैनें कहा था ना कि मैं ठीक हूँ”। मैने भी अनजान बनते हुये उन्हें नमस्ते किया और अपनी दूकान पर आने के लिये वहाँ से चल पड़ा।
अन्दर ही अन्दर वह काँप रही थी परन्तु बाहर से सामान्य दिखाते हुये वह विक्रम के पास गयी और उसे गले लगाकर बोली “तुम बहुत अच्छे हो, मेरा कितना ख़्याल रखते हो। मुझे पता था कि मेरे मना करने के बावजूद तुम लौट आओगे मेरे लिये”। विक्रम को अभी भी मेरे वहाँ होने और मुख्य द्वार अन्दर से बन्द होने की वजह से थोड़ा शक हो रहा था।
बहरहाल अपनी पत्नी पर उसे विश्वास था इसलिये बोला “प्रिये, जब तुम घर पर अकेली हो तो इस दर्जी को अन्दर मत आने दिया करो”। शैलजा ने नाराज़ होने का नाटक करते हुये कहा “तुम्हारा मतलब क्या है विक्रम? वह कितना भला है, मेरा ब्लाउज़ देने के लिये घर पर आया और तुम उसेए पर शक कर रहे हो”। विक्रम ने रक्षात्मक होते हुये कहा “नहीं प्रिये, मैं तो बस चाहता हूँ कि तुम थोड़ा सतर्क रहा करो बस”।
विक्रम को सहज होता देख वह बोली “ठीक है जानू, आगे से मैं ध्यान रखूँगी। तुम हाथ मुँह धोकर तैयार हो जाओ, मैं तुम्हारे लिये चाय बनाती हूँ”। विक्रम बाथरूम गया और शैलजा ने सब कुछ ठीकठाक निपटने के लिये भगवान को धन्यवाद दिया और फ़िर से मेरे साथ लिये आनन्द के बारे में सोचने लगी। वह अभी भी अन्दर गीलेपन का अनुभव कर रही थी और शीघ्र ही कुछ अन्दर डालना चाहती थी। इसलिये उसने सोचा अभी विक्रम के लंड से ही काम चलाया जाय इससे वह भी खुश हो जायेगा। जैसे ही विक्रम बाथरूम से निकला वह उससे जाकर चिपक गयी और अपने स्तनों और गर्भाशय वाले भाग से उसके शरीर पर दबाव डालते हुये बोली “विक्रम, प्लीज़ मुझसे धीरे-धीरे और नरमी से प्यार करो, परसों रात तुम बहुत निर्दयतापूर्वक मुझे भोग रहे थे”।
उसके नितम्बों को मसलते हुये विक्रम ने पूछा “प्रिये, क्या तुम पक्का चाहती हो कि मैं तुम्हारे साथ सम्भोग करूँ क्योंकि कुछ घंटे पहले ही तुम्हें अपनी योनि में काफ़ी पीड़ा हो रही थी”। वह बोली “हाँ पर अब मैं ठीक हूँ” और पैंट के ऊपर से ही उसके आधे खड़े लंड को सहलाने लगी। शैलजा अपने स्तनों और योनि से विक्रम के शरीर को रगड़ रही थी और वह उसके नितम्बों को मसल रहा था। मेरे द्वारा थोड़ी ही देर पहले की गयी रति क्रीड़ा की वजह से वह पहले से ही गर्म और गीली थी और विक्रम की मसाज उस पर और रंग ला रही थी।
वह विक्रम के लंड को पकड़ कर बोली “विक्रम मुझे ये अभी चाहिये”। यह सुनकर विक्रम उत्तेजित हो गया पर साथ ही वह आश्चर्यचकित था क्योंकि शैलजा पहले सामान्यतया मूक प्रेमी ही थी। उसने उसे अपनी बाहों में उठाया और बिस्तर पर ले गया। फ़िर उसने उसकी साड़ी खींचकर उतार दी, अब शैलजा बिस्तर पर पेटीकोट और ब्लाउज़ में लेटी थी। ब्लाउज़ में उसके स्तनों के उभार बहुत ही सुन्दर दिख रहे थे और साथ ही उसकी क्लीवेज भी दिख रही थी। यह वही ब्लाउज़ था जो मैनें कल उसे सिलकर दिया था।
विक्रम ने ब्लाउज़ के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबाना शुरू किया और वह अपनी आँखें बन्द किये पुनः मेरे बारे में सोचने लगी। अब उसने धीरे-धीरे उसके ब्लाउज़ के हुक खोलने शुरू किये और शैलजा को इसका आनन्द उठाते हुये देख बोला “शैलजा, तुम इस ब्लाउज़ और पेटीकोट में बहुत ही कामुक लग रही हो”। अब उसका ब्लाउज़ पूरा खुला था और उसके भरे पूरे स्तन आज़ाद हो गये थे। विक्रम को यह देखकर हैरानी हुयी कि उसने ब्रा नहीं पहनी थी। दरअसल विक्रम के अचानक आ जाने पर जल्दी जल्दी में उसे ब्रा पहनने का समय ही नहीं मिला था। वह बोला “शैलजा, यह पहली बार है जब मैने तुम्हारा ब्लाउज़ खोला और तुमने ब्रा नहीं पहनी हुयी थी”।
इतना कहकर उसने जोर से उसके स्तनों को दबाया और निप्पलों पर चिंगोटी काटी। उसने इस मीठे दर्द से आह भरी और निडर हो कर बोली “प्रिये, जब मैं अन्दर ब्लाउज़ पहन रही थी तो मैं तुम्हारी आवाज सुनकर उत्तेजित हो गयी और तुमसे मिलने की जल्दी में मैने ब्रा पहनना छोड़ दिया। जल्दी ही तुम्हें पता चल जायेगा कि मैनें कुछ और भी नहीं पहना है”। अब उसने उसके निप्पलों को चूसना और दबाकर खींचना शुरू कर दिया। शैलजा के अन्तिम वाक्य को सुनकर विक्रम ने अनुमान लगाया कि उसने पैंटी भी नहीं पहनी है और जल्दी से अपना हाथ उसके पेटीकोट के अन्दर ले गया जोकि सीधा उसकी गीली और गर्म योनि पर पड़ा। वह फ़िर बोला “प्रिये, मैनें पहले तुम्हें इतनी जल्दी कभी गीला होते नहीं देखा” और इतना कहकर उसने अपनी उंगली बलपूर्वक उसकी रसभरी योनि में डाल दी।
उसे पता था कि उसका पति अपने शक की ओर इशारा कर रहा है पर इस समय वह मेरे ख़्यालों में कामोत्तेजना से ग्रसित थी इसलिये उसने अपने पति द्वारा स्तनमर्दन और हस्तमैथुन का आनन्द उठाते हुये बोला “प्रिये, दिन पर दिन तुम अपने काम में पारंगत होते जा रहे हो मैं भी और अधिक कामोत्तेजक हो रही हूँ”। विक्रम को अपनी शर्मीले स्वभाव की शैलजा में निश्चय ही परिवर्तन दिखाई दे रहा था पर उसकी इन कामुक बातों से वह उत्तेजित भी हो रहा था। उसे अपनी पत्नी से सीधे शब्दों में बोलने से डर लग रहा था पर उसे पता था कि इस सबका उस दर्जी से (यानि कि मुझसे) कुछ सम्बन्ध है।
अपनी पत्नी की बेवफ़ाई की बातें मन में आने की वजह से उसने बुरी तरह से शैलजा को मसलना शुरू कर दिया और उसके निप्पल को काटा। वह दर्द से चिल्लाई और बोली “ओह विक्रम, इतनी ज़ोर से मत काटो, दुःखता है”। इतना कहकर वह विक्रम के पैंट की चेन खोलने लगी। विक्रम ने भी कपड़े उतारने में उसकी मदद की। उसका पूरी तरह तना हुआ लंड एक फ़नफ़नाते हुये साँप की भाँति उसकी रसीली योनि में प्रवेश करने को बेताब था।
शैलजा विक्रम के लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर बलपूर्वक उसे अपने ऊपर ले आयी और अपनी टांगें फ़ैलाकर उसके लंड को अपने योनि मुख पर रगड़कर उसे अन्दर का रास्ता दिखाया। इस सब के बीच वह लगातार मेरे बारे में सोच रही थी और सम्भवतः विक्रम को भी इस बात का अंदेशा था इसीलिये उसने जोर से धक्का लगा कर अपना लंड उसकी योनि डाला और निर्दयतापूर्वक अन्दर बाहर करने लगा। वह ऐसा जानबूझकर कर रहा था जिससे कि इस बात का पता चल जाय कि उसे वाकई में दर्द हो रहा था या फ़िर उसने झूठ बोला था।
कामोत्तेजना और मेरे ख़्यालों की गर्मी में शैलजा भूल ही गयी कि उसने अपनी योनि में चोट के बारे में विक्रम से झूठ बोला था और विक्रम के इन जोरदार धक्कों का आनन्द उठाने लगी। उसके दोनों स्तन भी आपस में जोरजोर से टकराते हुये हिलते जा रहे थे। इन्हें देख विक्रम उत्तेजित तो हो ही रहा था पर साथ ही साथ उसे यह सोचकर गुस्सा भी आ रहा था कि इन्हे वह दर्जी भी दबा चुका है।
शैलजा की आँखें बन्द देखकर उसने यह भी सोचा कि वह मेरे बारे सोच रही है, और वह वास्तव में सही सोच रहा था। उसे इस बात से आश्चर्य था कि शैलजा इन जबरदस्त धक्कों की वजह से अपनी योनि में दर्द की तनिक भी शिकायत नहीं कर रही थी और अब उसे विश्वास हो गया था कि उसने अपने दर्द के बारे में उससे झूठ बोला था इसलिये विक्रम ने उसी संभोग सत्र में उसे दण्डित करने का निर्णय लिया।
तभी उसने धक्के मारना बन्द करके अपना लंड उसकी योनि से बाहर निकाल लिया और पुनः उसकी मांग का इन्तजार करने लगा। उसके अनुमान के अनुसार शैलजा ने आँखें खोलकर उससे पूछा “तुम रुक क्यों गये, जल्दी डालकर करो ना”। जैसे ही विक्रम ने यह सुना अपना पूरा बल एकत्रित करके उसने एक जोरदार धक्का लगाया और वह दर्द से चिल्लाई “आ…आ…आ… उ…उ…उ…छ…”पर उसने उसकी एक न सुनी और दूसरा धक्का और भी जोर से मारा। क्योंकि शैलजा चरम सीमा के निकट थी इसलिये वह इन घातक और जोरदार धक्कों का आनन्द उठाती रही।
अपने पति को पहली बार वह इतने आक्रामक अंदाज में चुदाई करते हुये देख रही थी। उसे भी अब यह लगने लगा था कि विक्रम उस पर नाराज़ है पर इसके बारे में अधिक न सोचते हुये वह मजे लेती रही। वह मेरी हवस में इतना डूब चुकी थी कि उसने विक्रम के गुस्से के बारे में अधिक ध्यान नहीं दिया पर यह निश्चय किया कि आगे से वह मेरे साथ सम्बन्ध बनाते समय अधिक सतर्क रहेगी और अच्छे बहाने तैयार रखेगी। विक्रम बीच बीच में रुक कर अपने बल को पुनः संगठित करके उसे जबरदस्त धक्के दे रहा था। शैलजा इसका भरपूर आनन्द ले रही थी पर शायद उसे इस बात का अंदेशा नहीं था कि इस सब के बाद जब वह सामान्य होगी तब यह बहुत दर्द करेगा।
विक्रम ने अब सोचा कि उसकी योनि में पीछे से कुतिया की तरह प्रवेश किया जाय। इस समय वो शैलजा को हर मायने में एक कुतिया ही समझ रहा था। न चाहते हुये भी वह अपने दोनों पैरों और हाथों के सहारे अपने नितम्बों को हवा में ऊपर करके लेट गयी। उसके नितम्ब लटक रहे थे और दबाये जाने के लिये बेताब थे। सामान्यतया उसे इस आसन में दर्द की वजह से चुदवाना पसंद नहीं था पर विक्रम ने अभी उसे सजा देने की सोच रखी थी इसलिये उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वह अपनी चरित्रहीन पत्नी को घसीट कर बिस्तर के किनारे पर लाया और स्वयं नीचे खड़े हो गया। शैलजा पीछे मुड़कर विक्रम के चेहरे पर ये वहशत और गुस्सा देख रही थी।
उसने उसके नितम्बों को पहले मसला और फ़िर गुस्से से चटाचट कई चपत लगा दिये जिससे उसके नितम्ब लाल हो गये, उनके ऊपर उसकी उंगलियों के निशान साफ़ चमक रहे थे। हर चपत के साथ शैलजा एक मीठे दर्द से चिल्लाती “आ…आ…आ… ह…ह…ह…”। फ़िर उसने अपने लंड को पकड़ कर उसकी योनि का रास्ता दिखाया और जोरों से धक्के मारने लगा। वह बार बार कह रही थी “आ…आ…आ…ह ओ…ओ…ओ…ह विक्रम, धीरे डालो दुःख रहा है”। वह उसने जरा भी नरमी नही दिखायी और उसे कुतिया की तरह चोदता रहा और उसके स्तनों को भी बुरी तरह से मसलता रहा।
जल्दी उसे इसकी योनि और स्तनों को इस निर्दयता की आदत पड़ गयी और वह एक और कामोन्माद के लिये तैयार होने लगी। वह आँखें बन्द करके एक बार फ़िर सोचने लगी कि यह सब उसके साथ मैं कर रहा हूँ। विक्रम भी अब चरम सीमा के निकट था पर अभी वह स्खलित नहीं चाहता था क्योंकि अभी उसे अपनी पत्नी को और दण्डित करना था। तभी अचानक कँपकपी के साथ शैलजा स्खलित होने लगी जिसे देख उसने अपना लंड तुरन्त बाहर खींच लिया और अपनी दो उंगलियों से उसकी योनि को रगड़ने लगा।
विक्रम की इस बात से वह आश्चर्यचकित रह गयी पर अपने कामोन्माद का आनन्द उठाती रही। इस बीच विक्रम उसके स्तनों और निप्पलों को दूसरे हाथ से बुरी तरह से मसलता जा रहा था। शीघ्र ही उसने महसूस किया की कामोन्माद की चरम सीमा पर पहुँचने के बाद अब वह सामान्य हो गयी है पर विक्रम अभी तक स्खलित नहीं हुआ था उसने अपने तने हुये लंड को पुनः उसकी योनि में डाल दिया। शैलजा यह नहीं चाहती थी पर विक्रम के सामने वह लाचार थी।
उसके हर धक्के पर उसे असह्य पीड़ा हो रही थी। विक्रम भी स्खलित होने की कगार पर था उसने अपना लंड बाहर निकाल कर शैलजा को सीधा किया और फ़िर अपने वीर्य का पूरा कोष उसके चेहरे और स्तनों पर खाली कर दिया। विक्रम की इस हरकत पर भी शैलजा चकित रह गयी क्योंकि पहली बार विक्रम ने अपना वीर्य उसकी योनि के बाहर निकाला था। उसे पता था कि विक्रम उससे नाराज़ है और उसकी योनि में दर्द भी अब उभरने लगा था पर तब भी इस सम्भोग सत्र का उसने सर्वाधिकार आनन्द उठाया था।
उसके बाद जल्द ही विक्रम सोने चला गया और शैलजा भी अपने बदन को अपने पेटीकोट से पोछकर नहाने के लिये चली गयी। वह बाथरूम में फव्वारे के नीचे खड़ी होकर अपने स्तनों और योनि को साफ़ करते अपने साथ दिन भर हुये घटना क्रम को सोच रही थी और फ़िर से उत्तेजित होने लगी थी। उसे पता था कि वह हमेशा से ही इस प्रकार के कठोर और निर्दयतापूर्ण संभोग की इच्छा रखती थी पर वह विक्रम से यह कह नहीं पा रही थी।
और अब जब विक्रम ने अंततः उसे यह सुख दिया तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी क्योंकि वह मुझे अपना शरीर समर्पित कर चुकी थी। अब उसके मन में दोनों की चाह और बढ़ गयी थी इसलिये उसने निर्णय लिया कि इन परिस्थितियों का चतुरता पूर्वक उपयोग करके दोनों का उपभोग किया जाय। वह जानती थी कि आज बिस्तर पर विक्रम के बर्ताव के पीछे उसके अनैतिक सम्बन्ध का शक ही है और किसी न किसी रूप में विक्रम भी उसके मेरे साथ सम्बंध को लेकर उत्तेजना महसूस कर रहा था। शैलजा अपने सभी कुकृत्यों को येनकेनप्रकारेण न्यायसंगत बनाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि कभी भी उसने अपने आप को एक चरित्रहीन कामुक कुतिया के रूप में नहीं सोचा था। जबकि सच्चाई इसके विपरीत थी, वह एक कामुक कुतिया से किसी भी मायने में कम नहीं थी।
उसने अपना बदन पोछा फ़िर ब्रा और पैंटी के ऊपर गाउन पहन कर बाहर आ गयी। विक्रम अभी भी अपने झड़े हुये और वीर्य से लिपे-पुते लंड के साथ अधनंगी अवस्था में सो रहा था। शैलजा ने उसके ऊपर एक चादर डाली और दूसरे कमरे मे चली आयी जहाँ वह अपना मोबाइल भूल गयी थी। उसने मोबाइल पर मेरा एक संदेश देखा, जिसमे लिखा था “उम्मीद है कि सब शान्तिपूर्वक और ठीकठाक निपट गया”। वह पढ़कर थोड़ा मुस्कुराई और मुझे छेड़ने के अन्दाज़ में उत्तर दिया “हाँ सब ठीक है, अभी अभी एक मस्त सत्र ख़त्म हुआ है”। तुरन्त मेरा प्रश्न आया “कौन सा सत्र? प्लीज़ बताओ…”।
उसने फ़िर छेड़ते हुये उत्तर दिया “वही उनके साथ लेन देन का सत्र”। मैनें पूछा “मेरे बारे में सोचा?” उसने कहा “नहीं”। पर जैसा कि जानते हैं कि पूरे सत्र के दौरान वह मेरे बारे में ही सोच रही थी। मैनें कहा “ये अच्छी बात नहीं है, रानी। अगली बार अपने पति से संभोग के समय मेरे बारे में जरूर सोचना, तुम्हें और अधिक आनन्द आयेगा जैसा कि आनन्द मुझे आता है जब मैं अपनी पत्नी की लेते हुये तुम्हारे बारे में सोचता हूँ”। यह संदेश पढ़कर शैलजा उत्तेजित हो गयी और पुनः उसकी योनि में खुजली होने लगी। उसे इस बात की अत्यधिक प्रसन्नता हो रही थी कि किस प्रकार से मेरे आने के बाद से उसका यौन जीवन बदल गया था।
वास्तव में वह हमेशा से ही अन्दर से एक कामुक स्त्री थी पर कभी खुल न पायी और उसके जीवन में मेरे जैसे ही एक यौनाकर्षक व्यक्ति की आवश्यकता थी जोकि खुलने में सहयता करे।
उसने मुझे और छेड़ते हुये कहा “नहीं, मुझे तुम्हारे बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मैं अपने पति से संतुष्ट हूँ और तुम भी अपनी पत्नी से सन्तुष्ट रहो”। दरअसल उसे मेरी पत्नी की योनि का जिक्र अच्छा नहीं लगा। यह प्यार में डूबी सभी औरतों की फ़ितरत है कि वह चाहतीं हैं कि उनका प्रेमी उनके सिवा किसी और से यौन सम्बन्ध न रखे। मैनें अपने अनुभव से जान लिया कि उसे मेरी यह बात पसन्द नहीं आयी, इसलिये मैनें जवाब लिखा “रानी, आज मैनें तुम्हारे साथ जो अनुभव किया वह पहले जीवन में कभी नहीं किया। तुम्हारा सुन्दर और कोमल शरीर मेरी बाहों में एकदम फ़िट होता है्।
इतने दिनों से अपनी पत्नी के साथ तो मैं सिर्फ़ एक रस्म अदायगी ही कर रहा था और जैसे मेरे लंड को तुम्हारा प्यार मिलेगा मैं अपनी पत्नी की योनि की तरफ़ देखना भी बन्द कर दूँगा”। मैनें जानबूझ कर ऐसी भाषा का प्रयोग किया क्योंकि उसकी सारी शर्म ख़त्म करके उसे पूरी तरह से खोलना चाहता था। उसे मेरे ये शब्द थोड़े अजीब से लगे पर इन्हें मजे में लेते हुये वह बोली “नहीं तुम्हें मेरी तभी मिलेगी जब तुम उसकी लेना बन्द कर दोगे। तब तक मुझे दोबारा छूना भी नहीं”। वह झूठ बोल रही थी और उसी समय मेरी बाहों में आने को बेताब थी पर वह मुझे जताना चाहती थी कि वह मुझसे सच्चा प्यार करने लगी है और उसे मेरे अपनी पत्नी के साथ यौन सम्बन्धों से ईर्ष्या हो रही है।
मैनें भी एक सच्चे प्रेमी का नाटक करते हुये कहा “ठीक है, अब जब तक तुम मुझे नहीं कहोगी मैं अपनी पत्नी की नहीं लूँगा। अब प्लीज़ मुझे बताओ कि हम फ़िर से कब मिल सकते हैं।” वह मेरे झूठे उत्तर को पाकर खुश हो गयी और लिखा “मैं कल तुम्हारी दूकान पर आऊँगी १२ बजे के आसपास।” मैने सोचा कि दुकान मे तो उसकी लेना मुश्किल होगा इसलिये मैने लिखा “क्या मैं तुम्हारे घर आ जाऊँ १२ बजे?” उसने तुरन्त उत्तर दिया “नहीं, मैं ही आऊँगी क्योंकि हो सकता है कि वो कल घर पर ही रहें या फ़िर ऑफ़िस से जल्दी लौट आयें”।
——क्रमशः——
इतना सब कुछ होने पर भी अभी शैलजा की हवस शांत नहीं हुई थी। इस sexy tailor story का अंजाम बस अगले ही भाग में..
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अन्य भाग- Part 5