(Rest House Me Chut Chudai)
लेखिका : कामिनी सक्सेना Office me rest house me chudai
सहयोगी : रीता शर्मा
मेरा नाम डा. कामिनी सक्सेना है। मैं विज्ञान के कोलेज में रीडर हूं। मेरी उम्र अभी 33 वर्ष की है। मेरी शादी हो चुकी है मेरे दो बेटे भी हैं। मेरे पति एक बिजनेस मैन है। हमारा एक सुखी परिवार है।
शादी के हमें लगभग 12 वर्ष बीत चुके हैं। अब सेक्स का वो पहले जैसा जोश नहीं रह गया है… पर कभी कभी ऐसा लगता है कि कोई मुझे पहले जैसा मजा दे। मन भटकने लगता है … मचलने लगता है… जिस्म टूटने लगता है। फिर नजरें किसी मर्द की ओर उठने लगती है। शायद किसी नये मजे के लिये … नये मोटे और लम्बे लन्ड से नयी चुदाई का मजा लेने के लिये। ऐसे ही एक बार मेरा मन भटक गया था … और फिर मेरा बांध टूट गया। मैं चुदने को आतुर हो उठी।
मेरे कोलेज में विजय नाम का एक सहायक प्रोफ़ेसर था। नया ही आया था। भोपाल में सेमिनार आयोजित की गयी थी। उसमें मेरा भी पेपर था। मुझे और मेरे सहायक रूप में विजय को मेरे साथ जाना था। हम दोनों ने रात की गाड़ी में रिजर्वेशन करवा लिया था। मेरे पति ने मेरा वहां पर एक अच्छे रेस्ट हाऊस में रिजर्वेशन करवा दिया था।
वहीं पर दूसरे वैज्ञानिक भी रुके थे। मुझे पता था कि विजय नया है और उसे रिजर्वेशन के बारे में कोई अनुभव नहीं था। मेरे मन में चूंकि बेईमानी थी इसलिये मैंने चुपचाप से अपने ही कमरे में उसका रिजर्वेशन करवा दिया था। मैंने अपना नाम डा. के. सक्सेना और साथ में विजय का नाम लिखवा दिया था।
सवेरे भोपाल में यूनिवर्सिटी की तरफ़ से गाड़ी आ गयी थी। हम सभी रेस्ट हाऊस में पहुंचे। मैंने जानबूझ कर तुरन्त गाड़ी से उतर कर रेस्ट हाऊस के कमरे की चाबी ले कर कमरे में आ गई। थोडी देर में विजय भी आ पहुंचा। कमरे में मुझे देख कर चौंक गया। मैंने उसे बताया कि डा. के. सक्सेना मैं ही हूँ।
विजय हंस पडा… ‘मैंने सोचा कि जाने ये डा. के. सक्सेना कौन है… ‘
‘क्यों… मेरा नाम नहीं पता था क्या?’ Office me rest house me chudai
‘नहीं… मुझे किसी पुरुष का नाम लगा… पर ये तो आप ही निकली… लेकिन आप ओर मैं एक ही कमरे में… ?’
‘कोई कमरा खाली नहीं है … इसलिये मैंने मेरे साथ ही आपका नाम लिखवा दिया… ‘
थोड़ी ही देर में चाय नाश्ता आ गया। हम दोनों ने नाश्ता करके थोड़ा आराम किया… विजय इतनी देर में नहा कर आ गया… वो सफ़ेद पाज़ामे और कुर्ते में अच्छा लग रहा था। उसका कसा हुआ शरीर मुझे आकर्षित कर रहा था। मैं भी फ़्रेश हो गयी… और फिर हम दोनों पेपर चेक करने लगे।
सेमिनार में मेरा पेपर 1 बजे पूरा हो गया था। विजय मेरे पेपर सम्हालने के बाद मेरे पास आ कर बैठ गया। 2 बजे लन्च ब्रेक हुआ … हम दोनों वापस कमरे में आ गये।
शाम को खाना खा कर हम बाहर यूं ही टहलने लगे। मैंने धीरे से शुरूआत की… और मै उसके हाथ से हाथ को छूने लगी। बात बात में उसके बाहों में हाथ मारने लगी। मुझे पता चल गया था कि उसे भी छूने में मजा आ रहा था।
मैंने मौका देख कर शादी की बात छेड़ दी… विजय अपनी गर्ल फ़्रेंड की बातें बताने लगा। मैंने उससे उसकी गर्ल फ़्रेंड के साथ सेक्स के बारे में पूछा… तो उसने बताया कि वो उसे कुछ भी नहीं करने देती है। मुझे लगा कि विजय सेक्स की बातों से कुछ उत्तेजित हो गया था। मैं तो यही चाहती थी। अब हम दोनों ऊपर वापस कमरे में आ गये।
मैंने रात को पहनने वाला अपना हल्का सा पज़ामा पहन लिया और उस पर एक छोटा और ऊँचा सा कुर्ता डाल लिया। विजय ने भी अपना सफ़ेद पाज़ामा पहन लिया था। मैंने कमरे की लाईट बन्द कर दी और हम दोनों बाहर बालकनी पर आकर खड़े हो गये। हल्की हल्की हवा चल रही थी।
विजय भी पास में खड़ा था, पर उसका मूड कुछ और ही था। उसके पज़ामे में से उसका जोर मारता हुआ लन्ड नजर आ रहा था। मैं भी बहाने से हाथ हिला कर कभी कभी उसके लन्ड को छू लेती थी । कुछ देर हम बातें करते रहे फिर विजय से रहा नहीं गया… वो अटकते हुये कुछ कहने की कोशिश करने लगा । मै सब समझ रही थी। उसका लन्ड पज़ामे में से उठा हुआ साफ़ दिख रहा था।
‘मैं आपसे कुछ कहूं… बुरा तो नहीं मानेंगी ना… ‘ उसके कहने के अन्दाज़ से ही लग रहा था की अब वो मुझे पटाने की कोशिश करेगा…
‘हां… हां… कहो… ऐसा क्या है… ‘ वो कुछ और मेरे नजदीक आ गया। मुझे भी लगा कि अब कुछ होने वाला है। मैं मन ही मन मुस्करा उठी… लगा कि फ़ंसा… ।
‘वो… आप मुझे बहुत अच्छी लगती है… ।’ मैं सुन कर मन ही मन आनन्द से भर गयी।
‘अच्छा… क्या अच्छा लगता है… ?’ मैंने उसे और उकसाया। मेरे मन की धड़कन बढने लगी। उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया। मुझे लगा कि लोहा गरम है … पिघल रहा है… अभी मौका है… । उसने मुझे थोड़ा सा अपनी ओर खींचा… मैं जान करके उसके पास सट गयी। मेरा दिल धक से रह गया… उसका लन्ड मेरे कूल्हे से टकरा गया, एक दम कड़क और तना हुआ। Office me rest house me chudai
मेरी सांसे बढ़ गई… दिल की धड़कने तेज हो गयी। चेहरा लाल होने लगा। उसने मुझे कमर से दबाया… मैं बिना कोई मौका खोये उससे लिपट गयी… विजय के होंठ मेरे नरम होंठों से छूने लगे… और फिर धीरे से दोनों आपस में मिल गये।
मेरी चूत को साथी मिलने वाला था। मैं उसे पीछे धक्का देते हुये बालकनी से कमरे में ले आई। उसने मेरे बोबे दबाने शुरू कर दिये। मेरे शरीर में सनसनी फ़ैलने लगी… मेरे उरोज कड़े हो गये … चूत पानी छोड़ने लगी। मेरी हालत उत्तेजना से बुरी हो गयी … तभी उसने मेरी चूत रगड़नी चालू दर दी… अब सब कुछ मेरी सहनशक्ति से बाहर हो गया… मैंने हाथ बढ़ाकर उसका लन्ड पकड़ लिया।
एकबारगी उसका मोटा और लम्बा लन्ड देख कर मेरा मन चुदाने को करने लगा। मैंने उसका पजामा नीचे खींच दिया … अब उसका लन्ड मेरे गिरफ़्त में आ गया। मैं उसका लन्ड जोर जोर से दबाने लगी। वो मेरी चूत को मसले जा रहा था…
‘आऽऽऽह विजय… मैं मर गयी… हाय रे… … धीरे… मेरी छूट जायेगी… ‘ मैं आनन्द के मारे झुकने लग गई।
‘मेरा लन्ड मसल डालो… सीऽऽऽ आआऽऽऽ … मजा आ रहा है… ‘ उसका मैंने मस्ती में जोर से मसल दिया। उसने मेरी गान्ड की गोलाईयां मसल डाली। मेरी चूतड़ों की दरारों को घिस डाला। चूत को अब भी मसले जा रहा था… मेरा दाना पिघल उठा… मेरी चूत ने अब जोर मारना शुरु कर दिया।
मुझे लगा कि मैं झड़ने वाली हूं। पर उत्तेजना चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी। मैं विजय से चिपकती जा रही थी। हाय रे… मेरा पानी छूटने लगा … मैं झड़ने लगी… । पर ये क्या… अचानक मेरे हाथ भीग गये… विजय के लन्ड ने थोडा जोर लगाया और उसका वीर्य निकल पड़ा। उसके वीर्य की पिचकारी मेरी चूत पर पडी… और फिर मेरे पजामे को गीला कर दिया।
कुछ देर हम दोनो ऐसे ही लिपटे और चिपके रहे… फिर अलग हो गये। मै शरम के मारे वहीं बैठ गयी। मैंने अपना मुँह छुपा लिया। विजय ने तुरन्त अपना तौलिया लपेटा… और मेरा तौलिया मेरे ऊपर डाल दिया। Office me rest house me chudai
मैं उठी और भाग कर बाथरूम में चली गयी… मैंने सफ़ाई की और मन ही मन अपनी सफ़लता पर खुश हो उठी। मुझे मालूम था कि इतना कुछ होने के बाद अब चुदने में समय नहीं लगेगा… सबसे पहले मैंने अपनी गान्ड में क्रीम लगा ली… क्योंकि मर्द से गान्ड मरवाने मुझे बहुत मजा आता है। चूत को भी पानी से अच्छी तरह से साफ़ कर लिया।
मैंने तौलिया लपेटा और बाहर आ गयी… विजय भी बाथरूम में साफ़ होने को चला गया। रात के 11 बज रहे थे। मैं बिस्तर पर आकर लेट गयी और तौलिया खोल कर पास में रख लिया। टोप भी उतार दिया और नंगी हो कर सो गयी। चादर ऊपर तक ओढ़ ली। विजय भी सिर्फ़ तौलिया लपेटे हुये बाहर आया और सोफ़े पर लेट गया।
मैंने उसे बडी अदा से मुस्करा कर कहा,’बिस्तर बहुत बड़ा है, यहीं पर सो जाओ।’
उसे तो शायद बुलावे का इन्तेज़ार ही था। वो तुरन्त उठा और लपक कर आ गया। पहले तो वो मेरे पास लेटा रहा… फिर बोला,’थोडी सी चादर मुझे भी दे दो… ‘
‘अच्छा… एक ही चादर में आओगे … इरादे तो नेक है ना… ‘ मुझे तो चुदने की लग रही थी… मैंने अपनी चादर उसके ऊपर डाल दी। उसने अपना तौलिया पता नहीं कब उतार दिया था। हम दोनों के नंगे शरीर का स्पर्श हो गया…
‘विजय… हाय … तुम तो नंगे हो… ‘
‘तुम भी तो नंगी हो… ‘
‘हाय रे … मै मर गयी… विजय… ‘
… एक बार मैं फिर उससे चिपकने लगी। उसके हाथ मेरे शरीर पर रेन्गने लगे। मेरे शरीर में उत्तेजना भरने लगी। मेरे अंग कड़े होने लगे… फिर से वासना भड़क उठी। मै उसके जिस्म को सहलाती जा रही थी… और लन्ड को भी मसलती जा रही थी। नंगे बदन एक दूसरे से रगड़ खाने लगे… दो जवान जिस्म सुलग उठे। विजय का लन्ड कठोर होता जा रहा था… उसका उफ़नता हुआ लन्ड मेरे शरीर में घुसने को बेकरार हो उठा।
मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। विजय ने करवट बदली। मेरी पीठ से उसका जिस्म सट गया। जैसा सोचा था वही हुआ … मेर मन खुशी से नाच उठा… उसका लन्ड मेरी गान्ड चोदने के लिये बेकरार हो रहा था। मुझे गान्ड चुदवाना बहुत ही अच्छा लगता है… क्योकि देर तक चुदाई कराना मुझे अच्छा लगता है।
उसका लन्ड मेरी चूतड़ों की दरारों में फ़िसल रहा था। शायद गान्ड के छेद को ढूंढ रहा था। मुझे तेज सिरहन होने लगी थी। चूतड़ों की दोनों गोलाईयां खुलने को तैयार थीं… उसके हाथ धीरे से मेरी चून्चियो पर कब्जा जमा चुके थे। मेरी चूंचिया कड़ी हो गयी थी। Office me rest house me chudai
उसने मेरी चूंचियो को दबाते हुए लन्ड का दबाव मेरी चूतड़ों कि दरारों में डाला… मेरी चिकनी दरारों के बीच लन्ड सरकता हुआ मेरे गान्ड के द्वार पर आ पहुंचा था। मैंने बेचैनी से उसे देखा। विजय ने प्यार से मेरी चूंचियों को जोर से दबा कर गाण्ड का दरवाजा खोल दिया और सुपाड़ा अन्दर घुसा दिया। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी। मैंने अपने चूतड़ों को और पीछे की ओर उभार दिया और उसके लन्ड के साथ साथ जोर लगाने लगी…
उसका लन्ड मेरी सिस्कारियों के साथ आगे बढ चला। फिर एक और धक्का और लन्ड पूरी गहराईयों तक उतर गया। मैंने अपनी एक टांग उपर उठा दी और उसकी टांगों पर रख कर गान्ड को और खोल दी। अब उसका लन्ड मेरी गान्ड को सरलता से चोद रहा था। उसका हाथ अब चूंचियों पर से हट कर चूत पर आ गया था।
उसने अपनी एक उन्गली चूत में घुसा दी और लन्ड के धक्कों के साथ उंगली भी अन्दर बाहर कर रहा था। उसके धक्के तेज होने लगे। मेरी चिकनी गान्ड में भी मीठा मीठा सा मजा आने लगा था। मेरी चूतड़ भि हिल हिल कर गान्ड चुदाने में मेरा साथ दे रहे थे। मेरा अंग अंग उत्तेजना से भर उठा था। विजय की सिसकारियां बढ गयी।
अचानक उसने अपना लन्ड गान्ड में से निकाल लिया। मुझे उल्टा लेटा कर मेरे नीचे तकिया लगा दिया। मैं अपनी बाहों की कोहनियों पर हो गयी और सामने से ऊपर उठ गयी। तकिया लगाने से मेरी चूत थोड़ी सी ऊपर हो गयी। मेरी टान्गों के बीच में आकर उसने अपना लन्ड मेरी चूत के छेद पर लगा कर उसे दबा दिया।
मैं चिहुंक उठी। लन्ड का स्पर्श पाते ही चूत का द्वार अपने आप ही खुल गया… लन्ड का स्वागत हुआ … और सुपाड़ा फ़क से अन्दर घुस गया। चूत पूरी गीली थी… । एक दम चिकनी … मैंने भी जोश में चूतड़ उछाल दिया। नतीजा ये हुआ कि लन्ड फ़च की आवाज करता हुआ पूरा अन्दर तक पहुंच गया।
खुशी और आनन्द के मारे मैं चीख उठी… ‘मेरे राजा… मजा आ गया … पूरा घुसेड़ दो अपना लन्ड… हाऽऽऽय… ‘
उत्तर में विजय ने मेरी दोनों चूंचिया दोनों हाथों से दबा दी। और अपनी तेजी बढा दी। उसका लन्ड इंजिन के पिस्टन की तरह फ़काफ़क अन्दर बाहर चलने लगा। स्तनो को अच्छी तरह से दबा कर चोद रहा था।
‘मर गयी राजा… चोद दे रे… हाय ओऽऽऽह … मां चोद दे मेरी…’
‘हां… मेरी रानी… तुझे छोड़ूगा नहीं … पूरा चोद डालूंगा… मेरी कुतिया…’
‘हां रे ऽऽऽऽ… मेरी चूत का भोसड़ा बना दे … मेरे राजा… हाय रे… ‘
‘आऽऽऽह्ह्ह… रे… तेरी चूत मारूं… बहन चोद… कुतिया… रन्डी… ले… और ले… लन्ड्… ‘
‘राजा… चूत फ़ाड़ डाल… मां के लौड़े … मार लन्ड को चूत पे… तेरी भोसड़ी… के ‘
दोनो तरफ़ से वासना भरी गालियों की बौछारों के बीच चुदाई चरमसीमा पर पहुन्च रही थी। मेरे से तो अब नहीं रहा जा रहा था … लग रहा था कि अब गयी… अब गयी… मै रोकना चाह रही थी पर… वासना की तेजी… उत्तेजना की तेजी… उबल रही थी… । Office me rest house me chudai
‘मादरचोद… भोसड़ी के … मैं तो गयी रेऽऽऽऽऽ … चोद … चोद… जोर लगा… फ़ाड़ दे… बहनचोद… ‘
‘अभी रुक जा छिनाल … मेरी भी मां चुदने वाली है… मै भी आया… मां की लौड़ी… ‘
‘हाऽऽऽय रे… मरीऽऽऽ … निकला पानी रे… हाय रे चुद गयी… चुद गयी… निकल गया रे… ‘
मैं धीरे धीरे झड़ने लगी… पर उसके झटके चूत में चलते रहे। मैं निढाल होने लगी। मैंने अपनी चूंचियों से उसका हाथ हटा दिया। अब विजय ने भी अपना मोटा और लम्बा लन्ड चूत से बाहर निकाल लिया।
उसने मुझे सीधा किया और अपना लन्ड मेरे मुंह पर रख दिया। मैं हंस पड़ी,’अब एक छेद तो छोड़ दो…’
‘प्लीज… थोड़ा सा रह गया है…’
और उसने अपना लन्ड मेरे मुख में घुसा दिया। पहले मैं उसे चूसती रही पर उसने मेरे मुँह को ही चोदना चालू कर दिया। उसका लन्ड मेरे गले तक को छू रहा था। मैंने तुरन्त उसका लन्ड अपनी मुठ मे ले कर… उसे जोर से भीन्च कर मुठ मारने लगी…
बस इतना तो उसके लिये काफ़ी था… उसके लन्ड ने वीर्य की पिचकारी मेरे मुख में ही छोड़ दी। चूतड़ों और लन्ड के जोर से पिचकारी… जोर से छूट रही थी… मुझे पता नहीं कितना पी गयी और कितना मेरे चेहरे पर बिखर गया। लन्ड पूरा चूस कर साफ़ कर दिया…
अब विजय बिस्तर से उतर गया। हम एक बार फिर बाथरूम में गये… पानी से साफ़ करके बाहर आये… बाथरूम के बाहर हम आपस में एक दूसरे को नंगे निहारने लगे… मुझसे रहा नहीं गया… मुझे उस पर प्यार आने लगा, मैंने अपनी बाहें फ़ैला दी… हम फिर से एक दूसरे के गले लग गये…
रात के 12 बज रहे थे। हम दोनों बिस्तर पर नंगे ही लेट गये। एक दूसरे से लिपट कर प्यार किया और उसकी बाहों पर सर रख कर और उसकी कमर पर अपनी टांगे डाल कर चिपक कर सो गयी।
अचानक रात को मेरी नीन्द फिर खुल गयी… मेरी चूत में विजय का लन्ड घुसा हुआ था… मैं चुपचाप सोने का बहाना करती रही… वो चोदता रहा… मैं अपने आपको ज्यादा देर नहीं रोक सकी… उसके बदन को कसती गयी… उसने मेरी चूंचियां फिर से कस कर दबा दी… अब मैंनें भी उससे लिपट कर चूत के झटके मारने चालू कर दिये…
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